Author: Anil Maikhuri

  • Battlefield and Authentic Understanding

    A few days ago, we were studying the Bhagavad Gita with a very learned Acharya (teacher). On the first day of our study, Acharya ji raised the question: Why did Lord Krishna choose the battlefield of the Mahabharata to impart the knowledge of the Gita to Arjuna (or to the entire world)? Even if seen…

  • Yuddhbhoomi aur Vishvasniya Samajh

    युद्धभूमि और  विश्वशनीय समझ कुछ दिनों पूर्व हम एक बहुत ज्ञानी आचार्य जी के साथ गीता का अध्ययन कर रहे थे। अध्ययन के पहले दिन आचार्य जी ने यह प्रश्न उठाया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को (या पूरे विश्व को) गीता का ज्ञान देने के लिए महाभारत की युद्धभूमि को ही क्यों चुना? यदि…

  • Bhakti and Seva

    I spent the past two months at the Sivananda Ashram in Rishikesh. There, I had the opportunity to undertake a very basic course in Yoga and Vedanta. In these 59 days, I learned and experienced a lot. Among all, the two subjects that impacted me the most were Seva (selfless service) and Bhakti (devotion). Although…

  • Bhakti and Seva

    सेवा और भक्ति पिछले दो माह शिवानंद आश्रम, ऋषिकेश में रहा। वहाँ योग एवं वेदान्त का एक बहुत ही बेसिक कोर्स करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन 59 दिनों में मैंने बहुत कुछ सीखा और जाना। इस दौरान जिन दो विषयों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, वे हैं—सेवा और भक्ति। हालाँकि इनका हमारे कोर्स…

  • Sanātan Satya ke Sūtra

    सनातन सत्य के सूत्र हम अक्सर यह चर्चा करते हैं कि भारतीयता का आधार सनातन सत्य है। उस सत्य की झलक हमें हमारे सनातन साहित्य में सहज ही मिल जाती है। वैसे तो सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन इस आलोक में सहायक सिद्ध होता है, लेकिन हाल ही में कुछ ऐसे सूत्र मिले, जिन्हें सनातन सत्य…

  • Maulikta ki or Prerit Karta Ecosystem

    मौलिकता की ओर प्रेरित करता इकोसिस्टम हम दायरों में रहने के आदी हो चुके हैं। जो भी चला आ रहा है, उसी के अनुसार चलते रहना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति बन गई है। “अधिक प्रयास मत करो,” यही हमारा अवचेतन संदेश है। हम शारीरिक परिश्रम के लिए तो तैयार हैं – नौकरी मिल जाए, सुबह 10…

  • ‘Aagé baṛhnā’ kya hai?

    ‘आगे बढ़ना’ क्या है? मैंने 19 वर्षों तक मुख्यधारा की परियोजनाओं में काम किया। दिन-भर की व्यस्तता, अनगिनत ईमेल, फोन कॉल और असंख्य चर्चाएँ… लेकिन यह सब किस लिए? मैं खुद से पूछता था – क्या मैं सही दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ? क्या यह व्यस्तता सार्थक है? मेरे मित्र ‘आगे बढ़ने’ के विचार…

  • Arth ka Anubhav aur Shabd Part – 2

    अर्थ का अनुभव और शब्द – भाग-2 पिछले सप्ताह के ब्लॉग में मैंने ‘अर्थ का अनुभव और शब्द’ पर अपने विचार साझा किए। मैं उस समय यह देख पा रहा था कि अर्थ को हम स्वयं के भीतर देखते हैं और उसको संप्रेषित करने के लिए शब्द का उपयोग करते हैं। चर्चा में यह भी…

  • Arth ka Anubhav aur Shabd

    अर्थ का अनुभव और शब्दजब मनुष्य के बीच भाषा विकसित हो रही होगी, तब वस्तुओं और क्रियाओं के नामकरण अपने-अपने स्तर पर हो रहे होंगे। नामकरण से पहले भी ये सभी वस्तुएँ और क्रियाएँ अस्तित्व में रही ही होंगी। मनुष्य ने अपने संचार की सुविधा के लिए उन्हें अपनी भाषा के अनुसार शब्द दिए। ये…

  • Maanyataaye aur Jadata

    मान्यताएं और जड़ता सूर्य एक स्थान पर स्थिर है और पृथ्वी उसकी परिक्रमा कर रही है। साथ ही, वह अपनी धुरी पर भी समान गति से घूम रही है। यह हम सभी जानते हैं। पृथ्वी और सूर्य की यह स्थिति अनादिकाल से गतिशील होने के बावजूद स्थिर है। हालांकि, हमें पृथ्वी पर हर क्षण बदलाव…

  • DrishtiKon (Approach)

    साधारण भारतीय दृष्टिकोण साधारण भारतीय व्यक्ति का दृष्टिकोण, उसके जीवन में गहराई से जमीं हुई मान्यताओं से संचालित होता है। इन मान्यताओं को लेकर उसमें न तो कोई ग्लानि होती है और न ही कोई दंभ। उसके लिए मानना या विश्वास करना एक सहज प्रक्रिया है। वह स्वयं को इस अस्तित्व का एक छोटा-सा अंश…

  • Jatiltaoun Se Mukt ‘Mai’

    जटिलताओं से मुक्त ‘मैं’ बहुत पहले ‘संवाद की कला’ पर एक लेख पढ़ा था। उस लेख की पहली पंक्ति आज भी मुझे याद रहती है, “आप जिसके साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, वह किसी अन्य वस्तु से दस गुना अधिक स्वयं में रुचि रखता है।” इसलिए संवाद की शुरुआत हमेशा इस…