“Who am I?” and “Fundamental Virtues and Vices”
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‘मैं कौन हूँ’ एवं ‘मौलिक गुण व अवगुण’ ‘मैं कौन हूँ’ इस प्रश्न से हर कोई कभी न कभी जूझता ही है। इसी क्रम में एक और प्रश्न उभरा कि ‘वह कौन से मौलिक गुण या अवगुण हैं जो मैं…
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हमारे चारों ओर बहुत कुछ कहा जा रहा है। उसमें से कुछ समझ में आता भी है और कुछ नहीं भी आता। कुछ है जो भीतर ठहर जाता है। और कुछ है जो सुनाई भी नहीं देता। इस पूरी स्थिति…
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There is a significant difference between ‘saying’ and ‘being.’ All around us, much is being said—some of it makes sense, some doesn’t. Some things resonate within us, while others fail to leave a mark. Upon closely observing this dynamic, two…
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जिन्हें भी हम स्वयं को समझने के लिए या संसार को समझने के लिए आदर्श मानते हैं उनमें जे. कृष्णमूर्ती, रमण महर्षी, ओशा आदि या विपश्यना, उपनिषद, वेद आदि शामिल हैं, वे सभी किसी ना किसी रूप में दृष्टा की…
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सत्य, एक ही होता है। सबका अपना-अपना सत्य नहीं होता। सत्य निर्विवाद है। मनुष्य, होने के नाते हममें यह क्षमता है कि हम सत्य को देख सकते हैं। संभवतः प्रारम्भ में हम पूरे सत्य को ना देख सकें, वह अवस्था…
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(Based on a series of WhatsApp posts over the last few days) Modernity is embedded in the systems we are compelled to live in. Systems we cannot do anything about. That is a fact. More importantly, at the level of…
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(The following are two excerpts from chapter 16 – ‘Mending the inborn nature’ and chapter 18 – ‘Supreme happiness’, from ‘The Complete Works of Zuangzi’, translated by Burton Watson. This is the third and final blog post of collected excerpts…
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(The following is an excerpt from chapter 13 titled ‘The Way of Heaven’ from ‘The Complete Works of Zuangzi’, translated by Burton Watson. The book is a 2400 year old prose-poem by the Chinese sage Zhuangzi aka Chuang Tzu. I…
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(Recently, on the SIDH WhatsApp group someone shared the translation of a 2400 year old prose-poem by Zhuangzi aka Chuang Tzu. I tracked down the original and thought it would be nice to share it here as a blog post.…
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शब्द एक ध्वनि है। लिखें तो एक आकृति है। अस्तित्व में अनेक ध्वनियाँ हैं। कोई भी आवाज़ एक ध्वनि ही तो है। इसी प्रकार बहुत सी आकृतियाँ होती हैं। पर कुछ एक ही ध्वनियों का कोई खास अर्थ होता है।…
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अपने अंदर देखना। कितनी बार सुना है, पढ़ा है इस तरह की बातें। हमारे देश में तो आधुनिक गुरुओं से लेकर पता नहीं अतीत में कितने ही महापुरुषों ने ऐसी बातें की हैं। पर अंदर देखना क्या सिर्फ ‘निरपेक्ष’ संवेदनाओं,…
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When I was growing up in a government colony, we had a grassy ‘ground’ between the rows of two-storey flats. This meant that in the fifty or so homes surrounding the ground there were enough children to play all sorts…
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