बाल्मीकि रामायण के किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव के कहने पर हनुमान जी राम और लक्ष्मण के समीप जाकर, एक साधारण तपस्वी का रूप धारण कर अत्यन्त विनीत भाव व मधुर वाणी में वार्तालाप प्रारम्भ करते हैं। वे राम-लक्ष्मण से पहली बार मिल रहे हैं लेकिन फिर भी उनकी बातों को सुन और उनके व्यवहार को देख श्रीराम, लक्ष्मण से इस प्रकार कहते हैं :-
– लक्ष्मण! ये महामनस्वी वानरराज सुग्रीव के सचिव कपिवर हनुमान बातों का मर्म को समझने वाले हैं ।
– हनुमान जिस प्रकार सुन्दर भाषा में वार्तालाप कर रहे हैं उससे यह ज्ञात होता है कि उन्हें ऋग्वेद की शिक्षा मिली है, यजुर्वेद का उन्होंने अभ्यास किया है और सामवेद के वे विद्वान् हैं।
– निश्चय ही इन्होंने समूचे व्याकरण का कई बार स्वाध्याय किया है; क्योंकि बहुत-सी बातें बोल जाने पर भी इनके मुँह से कोई अशुद्धि नहीं निकली।
– सम्भाषण के समय इनके मुख, नेत्र, ललाट, भौंह तथा अन्य सभी अंगों में किसी भी प्रकार का कोई दोष प्रकट नहीं हुआ।
– इन्होंने थोड़े में ही बड़ी स्पष्टता के साथ अपना अभिप्राय निवेदन किया है। उसे समझने में हमें कहीं कोई संदेह नहीं हुआ है। इन्होंने रुक-रुककर अथवा शब्दों या अक्षरों को तोड़-मरोड़कर किसी भी ऐसे वाक्य का उच्चारण नहीं किया है, जो सुनने में कर्णकटु हो। इनकी वाणी हृदय में मध्यमा रूप से स्थित है और कण्ठ से बैखरी रूप में प्रकट होती है, अतः बोलते समय इनकी आवाज न बहुत धीमी रही है न बहुत ऊँची।
– ये संस्कार (व्याकरण के नियमानुसार शुद्ध वाणी को संस्कार संपन्न (संस्कृत) कहते हैं) और क्रम से सम्पन्न (शब्द उचारण की शास्त्रीय परिपाटी का नाम क्रम है) अद्भुत, अविलम्बित (बिना रुके धारा प्रवाह रूप से बोलना अविलम्बित कहलाता है) तथा हृदय को आनन्द प्रदान करने वाली कल्याणमयी वाणी का उच्चारण करते हैं।
– हृदय, कण्ठ और मूर्धा – इन तीनों स्थानों द्वारा स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होने वाली इनकी इस विचित्र वाणी को सुनकर किसका चित्त प्रसन्न न होगा। वध करने के लिये तलवार उठाये हुए शत्रु का हृदय भी इस अद्भुत वाणी से बदल सकता है।
बाल्मीकि रामायण में अनेकों अवसरों पर ऐसे अनुभव होते हैं जहाँ उस समय के लोक-व्यवहार, मनोभाव, राजनीति आदि के बहुत से महत्वपूर्ण सूत्र मिलते हैं। राम, हनुमान की सिर्फ बातचीत सुन उनकी शिक्षा, बुद्धि और सम्पूर्ण व्यक्तित्व का बहुत सुन्दर विश्लेषण करते हैं। राम, इस बात पर जोर नहीं दे रहे हैं कि उन्हें क्या सूचना मिल रही है बल्कि वे सूचना देने वाले की मनःस्थिति और उसके उत्पन्न हुए शारीरिक लक्षणों का विश्लेषण कर रहे हैं। बाल्मीकि रामायण में दो पात्रों के बीच के हुए व्यवहार को, उनकी बातचीत और विभिन्न स्थितियों के वर्णन को यदि हम इस विशेष दृष्टि से विश्लेषित करने का प्रयास करते हैं तो यह देखते हैं कि यहाँ शारीरिक लक्षणों को महत्व दिया गया है। उसीके आधार पर गुणों का निर्धारण किया जा रहा है। संचार के यह कौशल भारतीय समाज की संचार सम्बन्धी वैचारिक सम्पन्नता को दर्शाता है और हमें भारतीय चित्त, मानस व काल को एक नये सीरे से परिभाषित करने का एक अवसर प्रदान करता है।
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