सत्य, एक ही होता है। सबका अपना-अपना सत्य नहीं होता। सत्य निर्विवाद है। मनुष्य, होने के नाते हममें यह क्षमता है कि हम सत्य को देख सकते हैं। संभवतः प्रारम्भ में हम पूरे सत्य को ना देख सकें, वह अवस्था भी आ सकती है लेकिन अभी उसकी बात नहीं करते हैं। जिस तरह हम, अपने सामने रखी किसी वस्तु को देख सकते हैं, पहचान सकते हैं उसी तरह हम सत्य को भी देख और पहचान सकते हैं। यह क्षमता हममें है। यह होना बहुत बड़ी चीज़ है। यह हमारे आत्मविश्वास का पहला खूंटा है। सत्य को पहचाने बिना हममें आत्मविश्वास नहीं आ सकता।
जब हम सत्य की बात करते हैं ता हम उसे दो प्रकार से देख रहे हैं। पहला है; ‘सनातन सत्य’ जो समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार बदलता नहीं है। वह हमेशा अडिग है। वह था, वह है और हमेशा रहेगा। वह सर्वकालिक और सार्वजनिन है।
दूसरा सत्य है; तात्कालिक सत्य या सामायिक सत्य। तात्कालिक सत्य, बदलता है और यह सूचना की श्रेणी में आता है। सूचना बहुत महत्वपूर्ण है। सूचना, सही भी हो सकती है और गलत भी। सूचना बदल भी सकती है जैसे हमारे देश की राजधानी अभी दिल्ली है, यह एक सूचना मात्र है। राजधानी हमेशा दिल्ली नहीं थी और भविष्य में दिल्ली ही रहेगी यह भी तय नहीं है। इसलिए यह तात्कालिक कोटी की सही सूचना है। इसी तरह आज मैं स्वस्थ हूँ यह भी तात्कालिक कोटी की ही सूचना है। क्योंकि मैं अतीत में बीमार रहा हूँ और भविष्य में भी बीमार होने की संभावना हमेशा बनी रहेगी। देश की राजधानी या मेरे स्वास्थ्य के बारे जानकारी तत्कालिक सूचना है।
मनुष्य में सम्मान की चाहना है, वह चाहता है कि उसे सम्मान मिले और साथ ही वह यह चाहता कि वह किसी को सम्मान दे सके, यह सनातन सत्य है। सही अर्थों में किये गये सम्मान की पहचान सभी मनुष्यों को एक समान होती है और यह सहज है। हमारी हर काल में सम्मान की चाहना रही है, आज भी है और भविष्य में भी रहेगी। यह हमारा मौलिक स्वभाव है। जिसे बदला नहीं जा सकता। यह सनातन है। इसी प्रकार प्रतिदिन प्रातः काल में सूरज उगता है और शाम को ढल जाता है यह भी सनातन सत्य की कोटी में आता है। प्रत्येक काल में ऐसा ही रहा है और रहेगा। दुनिया के किसी भी हिस्से में ऐसा ही होता है। ‘सत्य बोलना’ और ‘सत्य’ में भी भेद है। ‘सत्य बोलना’ सनातन की श्रेणी में नही आता यह तत्कालिक सूचना की श्रेणी में आता है। जैसे किसी ने आपसे, आपका नाम पूछा तो अपने अपना अमुख नाम बताया। यह सत्य तो है लेकिन सनातन नहीं है। यह स्पष्टता आवश्यक है। यहाँ एक बात और जो स्पष्ट कर लेना चाहिए कि ‘सत्य’ और ‘सनातन सत्य’ इनकी श्रेणीयाँ या कोटियाँ अलग-अलग है। अतः इनकी तुलना से बचना चाहिए।
(पवन जी के साथ बातचीत के बाद जैसा मैंने समझा)
Leave a Reply
You must be logged in to post a comment.