साधारण ही श्रेष्ठ थे

भारत में कभी साधारण ही श्रेष्ठ हुआ करते थे। आम कारीगर अपना मालिक था, किसी के मातहत काम नहीं करता था और ये कारीगर उन जातियों से होते थे जिन्हें आज हम पिछड़ा और दलित की श्रेणी में डाल दिये हैं। यहाँ की समृद्धि जिसे पश्चिम के अर्थशास्त्र के इतिहासकार ऊंचे दर्जे की बताते हैं, इन साधारण लोगों की वजह से थी न कि यहाँ के राजा महाराजाओं की वजह से। यह भ्रम की यहाँ हज़ारों वर्षों से इन जातियों पर अत्याचार होते रहे हैं, इस तथ्य के साथ मेल नहीं खाते, पर हम इन विरोधाभासों को देख कर अपने पूर्वाग्रहों को फिर से जांचने को और बदलने को तैयार ही नहीं। अगर अपनी इतिहास दृष्टि बदलनी पड़े तो शायद अपनी राजनैतिक दृष्टि भी बदलनी पड़ सकती है। उसका डर, हमें सच्चाई को देखने से रोकता है।

आजकल शशि थरूर अंग्रेज़ों की लूट पर खूब बोलते हैं। अच्छी से ज़्यादा जटिल और अंग्रेजों की नकल वाले उच्चारण में बोलते हैं तो सम्भवतः ‘लिबरल और सेक्युलर’ भी सुन लेते होंगे। उन्हें बहुत अच्छा तो नहीं लगता होगा, ऐसा मेरा अनुमान है। पर थरूर को सुन लेते होंगे। इसके पहले कितने ही लोगों ने यही सब कहा है – पंडित सुंदर लाल, धरमपाल इत्यादि पर उन्हें कौन पढ़ता है? चलो इस बहाने इस पर बात तो सामने आई। पर थरूर भी 2 और 2 नहीं जोड़ कर दिखाते। लूट हुई, भयंकर लूट हुई यह तो बताते हैं पर यह समृद्धि आई कहाँ से उसकी बात नहीं करते। न इसकी की अगर यह समृद्धि उन कारीगर जातियों की वजह से थी जिन्हें हम आज पिछड़ा औऱ दलित कहते हैं तो फिर यह कैसे संभव है कि ये इतनी दयनीय हालत में हों और उनपर इतने ज़ुल्म होते हों।

हमारे सेक्युलरों को हमारे विगत में कुछ भी अच्छा हो ऐसा नहीं लगता। सब कुछ गलत था। औरतों पर अत्याचार, दलितों पर अत्याचार, पिछड़ों पर अत्याचार, समाज अंधविश्वास में डूबा हुआ, ब्राह्मणों का आडंबर और उनकी लूट, मनु स्मृति समाज को अंधकार में डुबोती हुई, और न जाने क्या क्या। अब ऐसे लोगों के पास समाज को लेकर क्या सपने हो सकते हैं? इनकी कल्पना में क्या आ सकता है? जो आता होगा विदेश से ही आता होगा। और कहाँ से आएगा?

इनको कभी रुक कर इस पर विचार करना चाहिए कि हमारे आदिवासियों के पास इतनी चाँदी कहाँ से आई। इतनी खराब हालत में भी एक आदिवासी महिला 2 या 3 किलो चाँदी के गहने अपने बदन पर पहने रखती है। सेक्युलरों को विचार करना चाहिए कि आखिर उस ‘बेचारी’ के पास इतनी चाँदी आई कहाँ से? और ख्याल रहे कि जहाँ तक मेरी समझ है भारत में चाँदी की एक भी खान नहीं है। तो वे विचार करें यह कहाँ से आई होगी? अगर ईमानदार खोज होगी तो शायद उन्हें भारत के समाज और यहाँ की व्यावसथाओं की कुछ समझ मिले। यहाँ के इतिहास और यहाँ की सभ्यता की कुछ अच्छाइयों की समझ बने। शायद…

(I combined two posts written by Pawanji on his blog on January 22, 2020 to get this one. Hope you like the end result. – Arun)