Year: 2024
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Accept Yourself with Courage
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साहस के साथ स्वयं को स्वीकार कीजिए हाल ही में मुझे ‘कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया’ द्वारा वाराणसी के राजघाट में 9 से 12 नवंबर, 2024 को आयोजित ‘KFI Annual Gathering-2024’ में भाग लेने का अवसर मिला। इससे कुछ ही दिन पहले, मैं वाराणसी में सिद्ध द्वारा आयोजित ‘संगीत संवाद’ के सिलसिले में वहां गया था। मात्र…
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Accept Yourself with Courage
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Recently, I had the opportunity to participate in the “KFI Annual Gathering-2024,” organized by the Krishnamurti Foundation India, at Rajghat in Varanasi from November 9–12, 2024. Just a few days before this, I had visited Varanasi for a “Musical Retreat” event organized by SIDH. I decided to attend this gathering due to my curiosity, despite…
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Meeting Life: An enquiry into the fragmented self
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Summary of Prof. Samdong Rinpoche’s Discourse on the Occasion of the KFI Annual Gathering 2024 Fortunately, I have the opportunity to participate in the ‘KFI Annual Gathering-2024,’ organized by the Krishnamurti Foundation at Rajghat, Varanasi, from November 9 to 12, 2024. The theme is “Meeting Life: An enquiry into the fragmented self.” Today is the…
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Meeting Life: An enquiry into the fragmented self
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KFI Annual Garhring-2024 के अवसर पर प्रो. समदोंग रिनपोछे के प्रवचन सारांश सौभाग्य से, कृष्णमूर्ति फाउंडेशन द्वारा राजघाट, वाराणसी में 9 से 12 नवम्बर, 2024 को आयोजित ‘KFI Annual Gathering-2024’ में भाग लेने का अवसर मिला है। विषय है “Meeting Life: An enquiry into the fragmented self”। आज पहला ही दिन है, और सुबह के…
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Thinking and Doing
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There is one thing called “thinking.” Then, there is “the subject.” Whenever we think, it is always within some context, which we are calling the subject here. We are trying to examine the process of thinking and the perspective behind it. In this context, the specific subject or reference of thought is not as important…
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Thinking and Doing
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सोचना और करना एक है ‘सोचना’। दूसरा है ‘विषय’। हम जब भी सोचते हैं, तो उसका कोई संदर्भ होता है; उसे ही विषय कहा जा रहा है। यहाँ हम सोचने की प्रक्रिया और उसके पीछे की दृष्टि को देखने का प्रयास कर रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में जिस विषय या संदर्भ में सोचा जा रहा…
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Binaries and the possibility of Extremism
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बायनरी सोच और अतिवाद की संभावना यह “संसार“ या “जगत“ विचारों से उत्पन्न होता है, और विचार मान्यताओं पर आधारित होते हैं। इन मान्यताओं के आधार कौन से हैं—वास्तविकता या कल्पना—यह जाँचने का विषय है। आधुनिक संसार की अधिकतर अवधारणाएँ काल्पनिक मान्यताओं पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए, उदारवाद में दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं—“अधिकार“ और…
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“Who am I?” and “Fundamental Virtues and Vices”
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‘मैं कौन हूँ’ एवं ‘मौलिक गुण व अवगुण’ ‘मैं कौन हूँ’ इस प्रश्न से हर कोई कभी न कभी जूझता ही है। इसी क्रम में एक और प्रश्न उभरा कि ‘वह कौन से मौलिक गुण या अवगुण हैं जो मैं अपने साथ पिछले जन्म से लेकर आया हूँ’। ये सवाल गहरे हैं और इन्हें आसानी…
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‘कहने’ और ‘होने का’ भेद
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हमारे चारों ओर बहुत कुछ कहा जा रहा है। उसमें से कुछ समझ में आता भी है और कुछ नहीं भी आता। कुछ है जो भीतर ठहर जाता है। और कुछ है जो सुनाई भी नहीं देता। इस पूरी स्थिति को थोड़ा बारीकी से देखने पर मुख्य तौर पर दो तरह की स्थितियाँ मुझे दिखायी…
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The Difference Between ‘Saying’ and ‘Being’
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There is a significant difference between ‘saying’ and ‘being.’ All around us, much is being said—some of it makes sense, some doesn’t. Some things resonate within us, while others fail to leave a mark. Upon closely observing this dynamic, two key scenarios emerge. In the first scenario, we speak with ourselves at the center of…
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सहज दृष्टा
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जिन्हें भी हम स्वयं को समझने के लिए या संसार को समझने के लिए आदर्श मानते हैं उनमें जे. कृष्णमूर्ती, रमण महर्षी, ओशा आदि या विपश्यना, उपनिषद, वेद आदि शामिल हैं, वे सभी किसी ना किसी रूप में दृष्टा की बात करते हैं। जे. कृष्णमूर्ती उसे बिना अपने किसी पूर्वाग्रह के और उससे महत्वपूर्ण बिना…
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सत्य
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सत्य, एक ही होता है। सबका अपना-अपना सत्य नहीं होता। सत्य निर्विवाद है। मनुष्य, होने के नाते हममें यह क्षमता है कि हम सत्य को देख सकते हैं। संभवतः प्रारम्भ में हम पूरे सत्य को ना देख सकें, वह अवस्था भी आ सकती है लेकिन अभी उसकी बात नहीं करते हैं। जिस तरह हम, अपने…