साधारण भारतीय दृष्टिकोण
साधारण भारतीय व्यक्ति का दृष्टिकोण, उसके जीवन में गहराई से जमीं हुई मान्यताओं से संचालित होता है। इन मान्यताओं को लेकर उसमें न तो कोई ग्लानि होती है और न ही कोई दंभ। उसके लिए मानना या विश्वास करना एक सहज प्रक्रिया है। वह स्वयं को इस अस्तित्व का एक छोटा-सा अंश मानता है और इसे सहजता से स्वीकार करता है। अर्थात वह अस्तित्व पर निर्भर है।
उसकी मूल मान्यता यह है कि वह सब कुछ नहीं जान सकता और जानने की आवश्यकता भी महसूस नहीं करता। जो वह जानता भी है वह भी उसने नहीं जाना है वह उसके सम्मुख तपस्या से उद्घाटित हुआ है। अतः यहाँ जानने के लेकर कोई दंभ नहीं है बल्कि कृतज्ञता और समर्पण का भाव है। जो वह नहीं जानता उसे वह ईश्वर की लीला मानता है। यह लीला फिलहाल उसकी बुद्धि की सीमा से परे है और उसे वह सहजता से स्वीकार ही नहीं बल्कि यह भी उसके मानस में कृतज्ञता और समर्पण का भाव ही उत्पन्न करती है। अतः ‘जानने’ और ‘ना जानने’ में कोई द्वन्द्ध नहीं है। दोनों ही अस्तित्व में स्वीकार्य हैं, सहज हैं।
इस दृष्टिकोण के कारण उसके जीवन की प्राथमिकता अध्यात्म और धर्म बन जाती है। उसका जीवन एक उच्च उद्देश्य, मोक्ष, को पाने की ओर प्रेरित होता है। वह अपने सभी कर्मों की प्रेरणा इसी उद्देश्य से प्राप्त करता है। उसके लिए जीवन अनंत है—न उसका कोई प्रारंभ है और न ही कोई अंत।
जब वह इस दृष्टिकोण से चीजों और घटनाओं को देखता है या उनके बारे में निर्णय लेता है, तो उसमें और प्रकृति में एक सामंजस्य, एक लय प्रकट होती है, जहाँ सहयोग मूल तत्व है।
आधुनिक दृष्टिकोण
आधुनिक व्यक्ति यह मानता है कि वह सब कुछ जानता है या जान सकता है। उसके अनुसार पूरे अस्तित्व में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वह समझ न सके। जिसे वह समझ नहीं पाता, उसका अस्तित्व भी उसके लिए मान्य नहीं है। वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि जानने के उसके तर्क भी मूलतः मान्यताओं पर टिके हैं।
उदाहरण के लिए, जब हम डॉक्टर से किसी बीमारी की दवा लाते हैं, तो हमें यह भ्रम होता है कि हम दवा और बीमारी को पूरी तरह समझते हैं। लेकिन वास्तव में, हम कुछ भी नहीं जानते। मेडिकल साइंस भी समय-समय पर अपनी दवाओं और विधियों को बदलती या बंद कर देती है, क्योंकि उसे भी सब कुछ ज्ञात नहीं है।
आधुनिक तार्किक व्यक्ति स्वयं को अस्तित्व का केंद्र मानता है। उसका विश्वास है कि पूरा अस्तित्व उसी के लिए बना है। इसलिए उसे हर चीज़ पर पूर्ण नियंत्रण चाहिए। वह अपने जीवन का हर पल सुनिश्चित देखना चाहता है, और यह तभी संभव है जब उसे हर चीज़ की जानकारी हो—मौसम, अंतरिक्ष, भूत, भविष्य आदि।
अनिश्चितता उसे असहज कर देती है। वह प्रकृति के नियमों को स्वीकार करने के बजाय अपने बनाये हुए काल्पनिक नियमों और अवधारणाओं के माध्यम से अस्तित्व को देखता है।
उसका जीवन सूचनाओं पर निर्भर है, और उसे हर समय नई-नई सूचनाओं की आवश्यकता होती है।
उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य भोग है, जिसे उसे अपनी सीमित आयु सीमा के भीतर पूरा करना है।
इस दृष्टिकोण में पदार्थ और समय दोनों सीमित हैं। भोग और सीमित समय के कारण उसके जीवन में और उसके चारों ओर संघर्ष व्याप्त है।
अनिल मैखुरी
05 जनवरी, 2024
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