Maanyataaye aur Jadata

मान्यताएं और जड़ता

सूर्य एक स्थान पर स्थिर है और पृथ्वी उसकी परिक्रमा कर रही है। साथ ही, वह अपनी धुरी पर भी समान गति से घूम रही है। यह हम सभी जानते हैं। पृथ्वी और सूर्य की यह स्थिति अनादिकाल से गतिशील होने के बावजूद स्थिर है। हालांकि, हमें पृथ्वी पर हर क्षण बदलाव का अनुभव होता है—कहीं रोशनी है, तो कहीं अंधेरा; कहीं रोशनी आ रही है, तो कहीं जा रही है। इस दृष्टि से देखें तो हर क्षण पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों पर 24 घंटे का कोई-न-कोई समय मौजूद रहता है। उदाहरण के लिए, जब मैं यह लेख लिख रहा हूं, मेरी घड़ी में शाम के 6:30 बज रहे हैं। लेकिन इसी क्षण दुनिया के अन्य हिस्सों में घड़ियां 24 घंटे के किसी और समय का संकेत दे रही होंगी। जहां से मैं सूर्य को देख रहा हूं, वह समय मेरे लिए शाम के 6:30 है । लेकिन इसी समय, पृथ्वी के अन्य हिस्सों के लिए सुबह, दोपहर या रात हो सकती है अर्थात 24 घंटों का कोई न कोई पल घट रहा है।

‘मान्यताएं’ भी कुछ इसी प्रकार होती हैं। हम जहां से उन्हें देखते हैं, उस समय और परिस्थिति के अनुसार वे हमें सम्पूर्ण प्रतीत होती हैं। जो कि गलत भी नहीं है—उस समय का वही अनुभव है। लेकिन वास्तव में, वह सत्य का केवल एक अंश मात्र है। समय और परिस्थिति बदलने से हमारे सम्मुख उसी सम्पूर्ण का कोई और आयाम या अंश आ जायेगा।

(हालांकि इस पर पहले भी चर्चा हुई है, और आगे भी हो सकती है, कि क्या हम अपने अनुभवों को सही मायने में देख पा रहे हैं? यहां, हम इस विषय के एक अन्य आयाम पर बात करेंगे।)

देखने और अनुभव करने की प्रक्रिया

देखने या अनुभव करने की प्रक्रिया बाहरी और आंतरिक दोनों हो सकती है। हम अक्सर किसी एक घटना को देखकर उसके आधार पर संबंधित विषय की एक संपूर्ण छवि अपने भीतर बना लेते हैं। फिर, उसी छवि पर अडिग हो जाते हैं और उससे संबंधित सभी अच्छे व बुरे निष्कर्ष निकाल लेते हैं।

उदाहरण के लिए, आपसी रिश्तों में हम किन्ही एक या दो घटनाओं के आधार पर दूसरे व्यक्ति के बारे में कोई विचार बना लेते हैं और फिर उस विचार पर अटल हो जाते हैं। क्योंकि उस एक घटना ने जो हमें दिखाया, वह हमारे लिए सत्य बन जाता है। इसके आधार पर अमुख व्यक्ति की एक छवि हमारे मन में बन जाती है। यह छवि या स्मृति भविष्य के हमारे पूरे व्यवहार को निर्धारित करने लगती है। लेकिन जिस घटना से यह छवि बनी है, वह उस समय की परिस्थिति या समयकाल के अनुरूप थी। जबकि किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व तो कई अन्य आयामों से भरा होता है। यदि हम थोड़ा ध्यान से देखने की कोशिश करें, तो पाएंगे कि हम व्यक्तियों से नहीं, बल्कि उनके बारे में बनाई गई अपनी मान्यताओं या छवियों से व्यवहार करते हैं।

विचारों की जड़ता
इसी प्रकार, जब हमारे मन में कोई विचार आता है या हमें लगता है कि हमने कुछ समझ लिया है, तो हम उस पर दृढ़ हो जाते हैं। उसे सम्पूर्ण मान लेते हैं। जबकि वह घटना या विचार, चाहे उस समय और परिस्थिति में सही भी हों तब भी वह सम्पूर्ण सत्य नहीं हो सकता। वह सत्य का केवल एक अंश मात्र हो सकता है। लेकिन घटनाओं या सूचनाओं के प्रभाव में बने अपने विचारों के प्रति हम जड़ हो जाते हैं। यही जड़ता द्वंद्व और संघर्ष का कारण बनती है।

जब हम किसी घटना, सूचना या विचार को सम्पूर्ण मान लेते हैं और उसके आधार पर अपनी मान्यताएं बना लेते हैं, तो हम जानने और समझने की असीम संभावनाओं को बहुत सीमित कर देते हैं। इससे मुझे कृष्णमूर्ति जी की यह बात भी समझ में आती है, जब वे कहते हैं, “क्या हमारा मस्तिष्क बिना किसी स्मृति के अनुभव कर सकता है?”

अस्तित्व और सहजता

कुछ दिनों पहले मैं उत्तराखंड के औली गया था। वहां से सुंदर पर्वत और उनकी चोटियां दिखती हैं। मेरे साथ एक सज्जन थे, जो उन सभी चोटियों के नाम जानते थे। वे मुझे एक-एक करके बताने लगे, रोचक था। लेकिन फिर मैंने उनसे सहजता से पूछा, “क्या इन चोटियों को पता है कि हमने उन्हें यह नाम दिए हुए हैं? या इन नामों से इस आपार मनोरम दृश्य की सुंदरता पर कोई फर्क पड़ता है?”

मनुष्य ने अपने आनंद के लिए अपने चारों ओर बहुत कुछ गढ़ा हुआ है। हमारी स्मृतियां और उनसे बनी मान्यताएं जिसमें नामकरण भी शामिल है इसी आनंद का एक हिस्सा मात्र हैं। व्यापक दृष्टि से देखें तो अस्तित्व पर इनसे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।

इस दृष्टिकोण से देखने पर मुझे अपने भीतर सहजता का अनुभव होता है। दम घोटने वाली जड़ता से एक सीमा तक मुक्ति मिलती है और हमेशा कुछ नया उद्घाटित होने की संभावना बनी रहती है।

अनिल मैखुरी
25 जनवरी, 2025


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