Meeting Life: An enquiry into the fragmented self

KFI Annual Garhring-2024 के अवसर पर प्रो. समदोंग रिनपोछे के प्रवचन सारांश

सौभाग्य से, कृष्णमूर्ति फाउंडेशन द्वारा राजघाट, वाराणसी में 9 से 12 नवम्बर, 2024 को आयोजित ‘KFI Annual Gathering-2024’ में भाग लेने का अवसर मिला है। विषय है “Meeting Life: An enquiry into the fragmented self”। आज पहला ही दिन है, और सुबह के सत्र में प्रो. समदोंग रिनपोछे का संबोधन सुनने का अवसर मिला। उनका पूरा संबोधन बहुत विस्तृत था, लेकिन कुछ बातें जो मुझे समझ आईं, उन्हें साझा करने का प्रयास कर रहा हूँ। निश्चित रूप से यह बातें प्रो. रिनपोछे जी ने ही कही हैं, लेकिन मैं यहाँ वे बातें लिख रहा हूँ जो मुझे समझ में आईं। मैं इस संभावना से इनकार नहीं कर रहा हूँ कि उन्होंने कुछ और कहा होगा और मुझे कुछ और ही समझ में आया। अपनी इस अनभिज्ञता के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

एक conditioned mind स्वयं की enquiry करने में हमेशा असमर्थ ही रहेगा, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति हमेशा बाहर देखने की होती है। उसकी सभी पाँचों इन्द्रियाँ बाहरी जगत को ही देख रही होती हैं।

हम यहाँ उस ‘मैं’ की बात कर रहे हैं जो सभी प्रकार की मौजूदा अवधारणाओं से स्वतंत्र है। सिर्फ ‘मैं’ ही ‘स्वयं’ का देख सकता हूँ, शेष दुनिया के लिए तो यह ‘स्वयं’ ‘अन्य कोई (other)’ है। अर्थात, ‘स्वयं’ की enquiry मेरे द्वारा ही हो सकती है और इसके लिए मुझे अपनी सभी प्रकार की conditioning से स्वतंत्र होना होगा।

जब आप स्वयं की enquiry करते हैं, तो उसमें ‘मैं’ को पहचानना काफी मुश्किल भरा कार्य है। सामान्यतः ऐसा लगता है कि शरीर ‘मैं’ हूँ या मस्तिष्क ‘मैं’ हूँ या जो मैं बोल रहा हूँ, वह मेरी आवाज है। इस तरह तो आप ‘मैं’ को चिन्हित नहीं कर पाएंगे। कुछ लोग ‘आत्मा’ को ‘मैं’ कहते हैं। बुद्ध और चारवाक ‘आत्मा’ में विश्वास नहीं करते। हालांकि ‘आत्मा’ की अवधारणा हमें स्वयं को जानने का एक धरातल तो प्रदान करती ही है।

जो enquiry कर रहा है, उसे उस विषय से स्वतंत्र होना चाहिए जिसकी वह enquiry कर रहा है।

पढ़ने और सुनने से प्राप्त ज्ञान श्रुतिमय ज्ञान है। यह एक प्रकार की सूचना है, उधार में लिया गया ज्ञान है। इस तरह मिली जानकारी से आपको लगता है कि आप जान गए हैं, लेकिन वास्तव में आप केवल मान रहे होते हैं। मानना, अंधभक्ति है।

प्राप्त ज्ञान का जब स्वयं मनन किया जाता है और उसे अपने अनुभव से जोड़कर जांचा जाता है, तो वह चिंतनमय ज्ञान है। जिस ज्ञान को हम साक्षात देख सकते हैं या सीधे अनुभव कर सकते हैं, उसे बौद्धगम्य ज्ञान कहा जाता है। इस प्रकार हम जान जाते हैं। जानना, वास्तविक भक्ति है। ऐसी भक्ति आपमें स्वतः ही उत्पन्न होती है। इसे आप करते नहीं हैं।

‘Self’ स्वयं में कोई स्वतंत्र इकाई नहीं है। इसमें एक प्रकार की सार्वभौमिकता है। यह पूरे अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ है और इसमें एक निरंतरता है। ‘Self’ की मूल प्रकृति में सार्वभौमिकता और निरंतरता विद्यमान हैं। अगर हम ‘Fragmented Self’ की बात कर रहे हैं तो हम वास्तविक ‘Self’ के प्रति अनभिज्ञ हैं। यदि ‘Self’ को जानने लगेंगे, तो देखेंगे कि वह मात्र एक है और Unfragmented है। ‘Self’ के प्रति हमारी यह समझ हमें समस्त मानवता के प्रति भी इसी समझ तक ले जाएगी।

समूह में अध्ययन करना, एकांत में अध्ययन करने से अधिक शक्तिशाली होता है।


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