हमारा इतिहास बोध

Note: This week’s post was published on Pawan Gupta’s blog dayaron se pare on January 22, 2020. Over the coming weeks some selected articles will be posted here but interested people may find it rewarding to visit ‘dayaron se pare’ and read all the posts there.

हमारा इतिहास बोध लगभग खत्म सा हो गया है। अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत के चक्कर में। पढ़े लिखे समूह में एक मोटी समझ यह बन गई है कि इतिहास में/से सीखने समझने जैसा कुछ नहीं है। हमारे यहाँ विशेषकर, सिवाय गंध, कूड़े, खराबी, छुआ छूत, गरीबी, भूखमरी, दीनता के अलावा कुछ है नहीं। और संसार के स्तर पर भी यह मान लिया गया है कि हमने तो हर क्षेत्र में पहले के मुकाबले “प्रगति” ही की है, तो विगत को देखने, समझने का कया फायदा? यह मोटी समझ बन गई है।

जब भी मैं अपने यहाँ के किसी उजले पक्ष की कोई बात करता हूँ तो यह तोहमत लगती है कि ठीक है पर सब कुछ अच्छा ही अच्छा था, ऐसा भी नहीं। तो भई, ऐसा कौन कह रहा है? मैं तो मोटे तौर पर बने narrative को चुनौती दे कर कुछ और देखने को प्रेरित करने की कोशिश करता हूँ। बस। मुझे जो narrative प्रचलन में आ गया है, जो सत्य नहीं है, जो आम पढ़े लिखे के दिमाग पर छा सा गया है उसे थोड़ा हिलाना डुलाना है। वह भी हो सके तो। सब कुछ अच्छा तो कभी भी नहीं रहा होगा। न राम के ज़माने में, न कृष्ण के ज़माने में, न बुद्ध और महावीर के ज़माने में और न ही ईसा या मोहम्मद के ज़माने में। सब कुछ अच्छा कुछ होता नही। साधारण ही श्रेष्ठ है और साधारण अपनी कमियाँ और त्रुटियां लिए होती हैं। प्रश्न सिर्फ यह होता है कि कुल मिला कर कैसा हो। सब कुछ अच्छा या सब कुछ बुरा यह either/or वाली आधुनिक सोच है जो सिर्फ असत्य के बीच झूलती रहती है। एक असत्य से दूसरे असत्य की ओर पेंडुलम की तरह। क्योंकि सत्य छोर या extreme पर नहीं होता। उसे कहीं बीच में, दाँये बायें तलाशना पड़ता है। मेहनत करनी होती है।

पर विगत से सम्बंध बनाये बगैर, अपना व्यक्तिगत विगत और सामाजिक विगत, दोनों, आगे का रास्ता खुलता नहीं। यह एक सत्य है। विगत को समझे बिना, उससे सुलह किये बिना, बगैर लाग लपेट के उसे देखे बिना, आगे के रास्ते खुलते नहीं। विगत पर झूठा गर्व जितना खतरनाक है, उतना ही खतरनाक या उससे ज़्यादा है उसे दुत्कारना, उससे नफरत करना।

हमारी आधुनिक शिक्षा ने हमारे विगत से हमारा या तो सम्बन्ध विच्छेद कर दिया है या उससे नफरत करना सीखा दिया है और अब उसकी प्रतिक्रिया में कुछ लोग उसका महिमामंडन करने लगे हैं। कुछ चीज़ें गौरवशाली होते हुए उसके दूसरे पक्षों को भी देखने की ज़रूरत है।