जीविका आश्रम, इन्द्राना, मध्यप्रदेश व सिद्ध, मसूरी, उत्तराखण्ड के संयुक्त तत्वाधान में दिनांक 2 से 5 नवम्बर, 2023 को कणेरी मठ्ठ, कोल्हापुर, महाराष्ट्र में एक संगोष्ठी आयोजित हुई। संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रान्तों से 7 संस्थानों से जुड़े लगभग 22 प्रतिभागि आये थे। मार्गदर्शन हेतु कणेरी मठ्ठ के मठाधीपति पुज्यश्री अदृश्य काडसिद्धेश्वर स्वामीजी उपस्थित रहे।
संगोष्ठी में मंथन हेतु निम्न उद्देश्यों को रखा गया था :-
- वर्तमान व्यवस्थाओं व विचार तंत्रों में स्वयं की असहजता को देखने का प्रयास करना।
- वर्तमान में प्रचलित विभिन्न आधुनिक अवधारणाओं की गम्भीरता से परीक्षा।
- भारतीयता पर आधारित विभिन्न प्रयासों के मूल सिद्धान्तों को पहचानने का प्रयास करना।
चर्चा को प्रारम्भ करते हुए प्रतिभागियों ने अपनी व्यक्तिगत यात्रा के बारे में बताया। इस दौरान उन्होंने अपने द्वन्द्वों और भारतीयता व आधुनिकता से जुड़ी व उन्हें स्पष्ट हुई कुछ धारणाओं को रखने का प्रयास किया। इस चर्चा में जो धारणायें प्रमुख रूप से निकल कर आयीं वे निम्न प्रकार हैं :-
- किसी भी यात्रा व संघर्ष में ‘आहार की सुरक्षा’ प्रारम्भिक बिन्दु है।
- कुटुम्भ का सुदृढ़ीकरण। अर्थात हम जिस भी समाज या समूह में वर्तमान समय में निवास करते हैं उनके साथ सृदृढ़ सम्बन्धों को विकसित करना।
- हमनें अपनी विचार यात्रा में जिस भी माध्यम को साधन के रूप में चयन किया है उसमें भी बहुत अधिक नहीं फंसना।
- स्थानीय स्तर पर उत्पादन के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर खपत को प्राथमिकता प्रदान करना।
- एक ऐसी व्यवस्था का विकास जिसमें उत्पादित वस्तुओं को ना तो बेचा जाये और ना ही उन्हें मुफ्त में वितरित किया जाये।
- आधुनिकता के विभिन्न आयामों में स्वयं फंसावट का निरतंर परिक्षण करते रहना।
- ‘होने’ की अवधारणा पर विश्वास मजबूत करना, ‘करने’ की बाध्यता से मुक्त होने का प्रयास करना।
उक्त धारणाओं की पहचान के उपरान्त इस संगोष्ठी में निम्न कार्यबिन्दुओं पर विचार किया गया।
- अपने अनुभवों को ईमानदारी से रखना और उन्हें सुनने का प्रयास बहुत सार्थक रहा। अतः भविष्य में भी इस तरह की संगोष्ठियों का आयोजन होना चाहिए।
- संगोष्ठी में शामिल हुए मित्रों द्वारा अपने-अपने स्तर पर किये जा रहे प्रयासों को ओर गहनता से जानने व समझने का प्रयास होना चाहिए।
- वर्तमान के विभिन्न आधुनिक उपक्रमों में उन उपक्रमों की पहचान करनी चाहिए जिन्हें सहजता से त्यागा जा सके और साथ में ऐसे उपक्रमों की भी पहचान होनी चाहिए जिनके बिना फिलहाल चलना संभव नहीं है।
- संगोष्ठी में उपस्थित मित्रों के बीच पारिवारिक स्तर पर भी सम्बन्धों को विकसित करने का प्रयास होना चाहिए।
- संगोष्ठी में उपस्थित मित्रों को समय-समय पर ऑनलाइन मिलने का प्रयास करना चाहिए और इस दौरान ए.के. सरन, आनन्द कुमार स्वामी, धर्मपाल जी, गाँधी जी जैसे चितन्कों के माध्यम से आधुनिकता को समझने का प्रयास होना चाहिए।
- आधुनिकता को समझने के क्रम में अपने जीवन में आ रहे बदलावों को मित्रों के साथ साझा करना चाहिए और उस पर चर्चा होनी चाहिए।
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