Apne andar dekhna

अपने अंदर देखना। कितनी बार सुना है, पढ़ा है इस तरह की बातें। हमारे देश में तो आधुनिक गुरुओं से लेकर पता नहीं अतीत में कितने ही महापुरुषों ने ऐसी बातें की हैं। पर अंदर देखना क्या सिर्फ ‘निरपेक्ष’ संवेदनाओं, सांसों का या विचारों और भावों का ही होता है या इससे ज्यादा भी कुछ होता है? अंदर देखने का समग्र संसार क्या है? क्या इसमें अपने पूर्वज – सिर्फ कुटुंब के ही नहीं, पूरी जाति, पूरे समाज, देश, और दुनिया के – भी शामिल नहीं हैं? उनके दुख, उनकी पीड़ा, उनकी चालाकियां, उनके कुकर्म, उनके अन्याय और उनपर जो अन्याय हुए, यह सब “अपने अंदर देखने” में शामिल नहीं हैं? मेरे मुताबिक हैं । और जो भी अंदर देखेगा ये सब उसे दिखाई देंगे भले ही साफ साफ नहीं, भले ही किसी और रूप में (जैसे अंग्रेजी जानने के अहंकार के पीछे भी पूर्वजों की पीड़ा शामिल होती है)। तो अंदर देखना कोई खेल नहीं है। आग से गुजरना जैसा है। इसलिए अधिकतर लोग या तो सतह तक रह जाते है, अपने को विक्टिम मान कर इसका सुख भोगने लगते हैं या भाग जाते हैं। अंदर देखना ट्रांसफॉर्मेशनल हो सकता है बशर्त कि आप लगे रहें, भागे नहीं। न ही सुख भोगने लगे। न victimhood में फंसे और न ही self-justification में।

अपने अंदर देखना क्या होता है? इसके क्या मायने हैं? इसका विस्तार क्या है – स्पेस और time – दोनो का? इसकी कोई सीमा भी है? अपने देश के लोग जहां आज खड़े हैं, अपने विगत के साथ (सिर्फ व्यक्तिगत विगत नहीं, पूरे देश और व्यापक समाज का विगत) उसमे देखने के क्या मायने हैं? इस देखने में व्यक्ति और देश, व्यक्ति और समाज, आज और विगत सब एक हो जाता है। कुछ अलग नहीं, कोई टुकड़ा अलग नहीं है। सब जुड़ा है। अपने अंदर देखे बगैर आगे का रास्ता नहीं निकलेगा या गलत होगा। क्योंकि सबसे जरूरी है सभ्यतागत गहरे घाव का सही इलाज। उसके लिए उसे देखना तथस्तता के साथ, क्लिनिकली ( सहानुभूति वगैरह नहीं, सिर्फ देखना) इसलिए जरूरी है क्योंकि तभी सही डायग्नोसिस होगी। यह अति आवश्यक है। यदि सही तरह देखा जाएगा यानि बगैर गुस्सा और victimhood के भाव के, तो इलाज भी इसी में समाहित है। इसी से आत्म विश्वास भी लौट जाएगा। सब कुछ ईमानदारी से, बगैर भावों में बहे, देखने पर निर्भर है। यह देखना ‘क्या’ और ‘कैसे’ को समझना होगा। यह कोई आसान बात नहीं है। देखना भी सीखना होगा।

इस देश में देखने, ध्यान देने (एक ही बात है) पर इतनी बाते क्यों हुई है, इतना जोर क्यों दिया गया है? इसीलिए कि यह इतना powerful है, बस देखना आना चाहिए। सजगता acute awareness, total attentiveness, पूरे विस्तार के साथ (काल का विस्तार और स्पेस का विस्तार दोनों) देखना होता है। और तथस्त हो कर। आप फिजिक्स के wave-particle experiment को याद कीजिए। बहुत बड़ी बात उसमें छुपी है। देखना अपने आप में वह शक्ति देता है जो दिखाई देने वाले ऑब्जेक्ट को परिवर्तित कर देता है। यह सत्य है।