Year: 2025
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Battlefield and Authentic Understanding
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A few days ago, we were studying the Bhagavad Gita with a very learned Acharya (teacher). On the first day of our study, Acharya ji raised the question: Why did Lord Krishna choose the battlefield of the Mahabharata to impart the knowledge of the Gita to Arjuna (or to the entire world)? Even if seen…
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Yuddhbhoomi aur Vishvasniya Samajh
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युद्धभूमि और विश्वशनीय समझ कुछ दिनों पूर्व हम एक बहुत ज्ञानी आचार्य जी के साथ गीता का अध्ययन कर रहे थे। अध्ययन के पहले दिन आचार्य जी ने यह प्रश्न उठाया कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को (या पूरे विश्व को) गीता का ज्ञान देने के लिए महाभारत की युद्धभूमि को ही क्यों चुना? यदि…
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Bhakti and Seva
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I spent the past two months at the Sivananda Ashram in Rishikesh. There, I had the opportunity to undertake a very basic course in Yoga and Vedanta. In these 59 days, I learned and experienced a lot. Among all, the two subjects that impacted me the most were Seva (selfless service) and Bhakti (devotion). Although…
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Bhakti and Seva
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सेवा और भक्ति पिछले दो माह शिवानंद आश्रम, ऋषिकेश में रहा। वहाँ योग एवं वेदान्त का एक बहुत ही बेसिक कोर्स करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन 59 दिनों में मैंने बहुत कुछ सीखा और जाना। इस दौरान जिन दो विषयों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, वे हैं—सेवा और भक्ति। हालाँकि इनका हमारे कोर्स…
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THE SANKHYA
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Hindu Philosophy Obeisance to Sri Kapila Muni, the founder of the Sankhya system of philosophy, the son of Brahma, the Avatara of Vishnu. The word ‘Sankhya’ means ‘number’. The system gives an enumeration of the principles of the universe, twenty-five in number. Hence the name is quite appropriate. The term ‘Sankhya’ is used in the…
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Inaction in Action
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This is the 18th verse from The Bhagavad Gita from Chapter IV, the commentary is given Sri Swami Sivananda कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः। स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥१८॥ He who seeth inaction in action and action in inaction, he is wise among men; he is a Yogi and performer of all…
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Sanātan Satya ke Sūtra
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सनातन सत्य के सूत्र हम अक्सर यह चर्चा करते हैं कि भारतीयता का आधार सनातन सत्य है। उस सत्य की झलक हमें हमारे सनातन साहित्य में सहज ही मिल जाती है। वैसे तो सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन इस आलोक में सहायक सिद्ध होता है, लेकिन हाल ही में कुछ ऐसे सूत्र मिले, जिन्हें सनातन सत्य…
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Maulikta ki or Prerit Karta Ecosystem
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मौलिकता की ओर प्रेरित करता इकोसिस्टम हम दायरों में रहने के आदी हो चुके हैं। जो भी चला आ रहा है, उसी के अनुसार चलते रहना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति बन गई है। “अधिक प्रयास मत करो,” यही हमारा अवचेतन संदेश है। हम शारीरिक परिश्रम के लिए तो तैयार हैं – नौकरी मिल जाए, सुबह 10…
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‘Aagé baṛhnā’ kya hai?
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‘आगे बढ़ना’ क्या है? मैंने 19 वर्षों तक मुख्यधारा की परियोजनाओं में काम किया। दिन-भर की व्यस्तता, अनगिनत ईमेल, फोन कॉल और असंख्य चर्चाएँ… लेकिन यह सब किस लिए? मैं खुद से पूछता था – क्या मैं सही दिशा में आगे बढ़ रहा हूँ? क्या यह व्यस्तता सार्थक है? मेरे मित्र ‘आगे बढ़ने’ के विचार…
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Sanātana
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सनातन का अर्थ है “Eternal and Perennial Truth”— शाश्वत और सतत सत्य। कृष्णमूर्ति के शब्दों में, यह “What Is” है। It is a given. You can’t do anything about it. इसलिए इसमें तर्क नहीं है। यह तो बस है। जैसा है, वैसा है। इसे पहचानना होता है। समझने जैसा कुछ नहीं है। सिर्फ देखना होता…
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Arth ka Anubhav aur Shabd Part – 2
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अर्थ का अनुभव और शब्द – भाग-2 पिछले सप्ताह के ब्लॉग में मैंने ‘अर्थ का अनुभव और शब्द’ पर अपने विचार साझा किए। मैं उस समय यह देख पा रहा था कि अर्थ को हम स्वयं के भीतर देखते हैं और उसको संप्रेषित करने के लिए शब्द का उपयोग करते हैं। चर्चा में यह भी…
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Arth ka Anubhav aur Shabd
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अर्थ का अनुभव और शब्दजब मनुष्य के बीच भाषा विकसित हो रही होगी, तब वस्तुओं और क्रियाओं के नामकरण अपने-अपने स्तर पर हो रहे होंगे। नामकरण से पहले भी ये सभी वस्तुएँ और क्रियाएँ अस्तित्व में रही ही होंगी। मनुष्य ने अपने संचार की सुविधा के लिए उन्हें अपनी भाषा के अनुसार शब्द दिए। ये…