The Ramayana Series: Part-1

वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण के बालकाण्डम् के षष्ठ सर्गः में राजा दशरथ की आयोध्या पूरी में रहने वाले नागरिकों की उत्तम स्थिति का वर्णन है। यह बहुत रोचक वर्णन है और हमें भारतीयता की दृष्टि और उसके अन्तर्गत मनुष्य के किन गुणों को प्राथमिकता मिलती रही है इसकी एक झलक देता है। 6-वें श्लोक में श्री वाल्मीकि जी कहते हैं, ‘उस उत्तम नगर में निवास करने वाले सभी मनुष्य प्रसन्न, धर्मात्मा, बहुश्रुत, निर्लोभी, सत्यवादी और अपने धन से सतुष्ठ रहने वाले थे।’ अगले श्लोक में कहते हैं उस श्रेष्ठ पुरी में कोई भी ऐसा कुटुम्बी नहीं था, जिसके पास उत्कृष्ठ वस्तुओं का संग्रह अधिक मात्रा में ना हो, जिसके धर्म, अर्थ और काममय पुरुषार्थ सिद्ध न हो गये हों तथा सभी के पास पर्याप्त मात्रा में गाय-बैल, घोड़े, धन-धान्य आदि उपलब्ध हैं। 9-वाँ श्लोक है कि वहाँ के सभी स्त्री-पुरुष धर्मशील, संयमी, सदा प्रसन्न रहने वाले तथा शील और सदाचार की दृष्टि से महर्षियों की भांति निर्मल हैं। 10-वाँ श्लोक है कि वहाँ कोई भी कुण्डल, मुकुट और पुष्पाहार से शून्य नहीं है। किसी के पास भी भोग सामग्रियों की कमी नहीं है। सभी नहा-धोकर साफ-सुथरे रहते हैं, अंगो में चन्दन का लेप लगाते हैं और सुगन्ध का प्रयोग करते हैं। वहाँ सभी पवित्र भोजन करते हैं, दान देते हैं और इस प्रकार सभी के मनुष्यों के मन उनके वश में रहते हैं। 13-वाँ श्लोक है, वहाँ निवास करनेवाले ब्राहम्ण सदा अपने कर्मों में लगे रहते, इन्द्रियों को वश में रखते, दान और स्वाध्याय करते तथा प्रतिग्रह से बचे रहते हैं। 14-वें श्लोक में वे कहते हैं कि वहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो किसी दूसरे व्यक्ति में दोष ढूँढ़ता हो। वहाँ कोई भी असमर्थ या विद्याहीन नहीं है।

यह व्याख्यान अद्भुत है। भारतीय मानस का एक प्रतिबिम्भ है। धन होना एक गुण है लेकिन ‘धन से संतुष्ठ रहना’ यह उससे भी महत्वपूर्ण व उच्च गुण है। धर्मशील, संयमी, सदा प्रसन्न रहने वाले, निर्मल जन, इस प्रकार के गुणों का वर्णन, आज के परिदृश्य में अकल्पनीय है। लोग नहा-धोकर साफ-सुथरे रहते हैं, अंगो पर चन्दन आदि का लेप करते हैं और सुगन्ध का भी प्रयोग करते हैं अर्थात स्वच्छता और सुन्दरता उस समय का एक प्रमुख गुण है। अपने मन को काबू में रखना, इन्द्रियों को वश में रखते हुए दान और स्वाध्याय आदि भारतीय मानस के प्रमुख गुण रहे हैं। यह सभी गुण एक ऐसे समाज की ओर ईशारा करते हैं जोकि बहुत गहन अध्ययन आदि के बाद एक स्थायी समाज है और जिसने अपनी प्राथमिकतायें चिन्हित कर ली हैं। सिद्ध में हम धर्मपाल जी या रविन्द्र शर्मा जी के माध्यम से जिस भारतीय समाज की झलक देखते रहे हैं उस के आधारभुत सिद्धान्त हमें रामायण जैसे अन्य पौराणिक ग्रन्थों में मिल रहे हैं। हमारा यह प्रयास जारी रहेगा और हम इसी प्रकार इन पौराणिक ग्रन्थों से रोचक सिद्धान्त एक श्रंखला के रूप में आपके सम्मुख रखते रहेंगे।


Comments

One response to “The Ramayana Series: Part-1”

  1. Very precise ,needs to be circulated in all schools & children made to read it collectively, discuss it with one of your volunteers

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